कालाकुंड: ग्रामीण पर्यटन का नया ठिकाना, होमस्टे में मिलेगा सुकून और अपनापन
मालवा की वादियों में बसा कालाकुंड इन दिनों पर्यटकों का नया ठिकाना बनता जा रहा है। ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर यह क्षेत्र अब ग्रामीण पर्यटन की पहचान के रूप में उभर रहा है। यहाँ के दो प्रमुख होमस्टे लीलाधाम होमस्टे (संचालक शिवप्रसाद दुबे) और तुलसी वन होमस्टे (संचालक सूरज यादव) पूरी तरह तैयार हैं और पर्यटकों का स्वागत करने के लिए खुले दिल से इंतजार कर रहे हैं।

ग्रामीण संस्कृति और मेहमाननवाजी का अनूठा अनुभव
कालाकुंड आने वाले पर्यटक यहाँ सिर्फ घूमने नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली का वास्तविक अनुभव करने आते हैं। गाँव की पगडंडियों पर सुबह की सैर, खेतों में ताज़ी हवा का अहसास, चौबारे में बैठकर कहानियाँ सुनना और मिट्टी के चूल्हे पर बनी रोटियों की खुशबू हर पल एक नई स्मृति छोड़ जाता है। बरखेड़ा और गुंजारा जैसे पास के गाँव अपनी सादगी और मेहमाननवाजी के लिए जाने जाते हैं। यहाँ परोसा जाने वाला दाल-बाफला और मशहूर कालाकुंड का कलाकंद पर्यटकों के बीच खास आकर्षण का केंद्र है।

किराया और सुविधाएँ
इन होमस्टे में ठहरने का किराया 2000 से 2500 रुपये प्रतिदिन रखा गया है। इसमें भोजन, ठहरने की सुविधा और गाँव की संस्कृति को करीब से जानने का अवसर शामिल है। होमस्टे संचालक बताते हैं कि उनका प्रयास केवल पर्यटकों को सुविधाएँ देने का नहीं, बल्कि उन्हें गाँव की जीवनशैली से जोड़ने का है।
प्रकृति प्रेमियों के लिए यहाँ की हरियाली, वादियों में बहती ठंडी हवा और पहाड़ी से दिखने वाले सूर्यास्त के दृश्य अविस्मरणीय अनुभव देते हैं। यहाँ आकर पर्यटक सिर्फ पर्यटन का आनंद ही नहीं लेते, बल्कि जीवन की भागदौड़ से दूर शांति और सुकून भी तलाशते हैं।
कालाकुंड का यह बदलाव ग्रामीण भारत की उस ताकत को दर्शाता है, जो पर्यटन के माध्यम से आत्मनिर्भरता और सामाजिक विकास की राह पर आगे बढ़ रही है। होमस्टे संस्कृति न केवल पर्यटकों को नई मंज़िलें दिखा रही है बल्कि गाँवों के लोगों को भी अपनी परंपरा और आतिथ्य से गर्वित कर रही है।

महिलाओं के लिए सुरक्षित पर्यटन की पहल
मध्यप्रदेश पर्यटन बोर्ड द्वारा संचालित ग्रामीण पर्यटन परियोजना और महिलाओं हेतु सुरक्षित पर्यटन स्थल (STDW) परियोजना इस क्षेत्र को खास बनाती है। निर्भया योजना से वित्त पोषित इस पहल के अंतर्गत इंदौर और आसपास की 350 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है। महिलाएँ अब ई-रिक्शा चालक, कुकिंग, स्मृति-चिह्न निर्माण और होमस्टे प्रबंधन जैसे कार्यों से जुड़ रही हैं। इससे न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ा है बल्कि उन्हें रोजगार के नए अवसर भी मिल रहे हैं।

सामाजिक और आर्थिक बदलाव का माध्यम
पर्यटन बोर्ड का मानना है कि ग्रामीण पर्यटन केवल सैर-सपाटे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक बदलाव का माध्यम भी है। कालाकुंड और इसके आसपास के गाँवों में पर्यटन से जुड़ी गतिविधियाँ स्थानीय युवाओं और महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ा रही हैं। साथ ही, शहरों से आने वाले लोग गाँव की परंपराओं और संस्कृति को करीब से देखकर ग्रामीण भारत से जुड़ाव महसूस कर रहे हैं।

प्रकृति और संस्कृति का संगम
प्रकृति प्रेमियों के लिए यहाँ की हरियाली, वादियों में बहती ठंडी हवा और पहाड़ी से दिखने वाले सूर्यास्त के दृश्य अविस्मरणीय अनुभव देते हैं। यहाँ आकर पर्यटक सिर्फ पर्यटन का आनंद ही नहीं लेते, बल्कि जीवन की भागदौड़ से दूर शांति और सुकून भी तलाशते हैं।
कालाकुंड का यह बदलाव ग्रामीण भारत की उस ताकत को दर्शाता है, जो पर्यटन के माध्यम से आत्मनिर्भरता और सामाजिक विकास की राह पर आगे बढ़ रही है। होमस्टे संस्कृति न केवल पर्यटकों को नई मंज़िलें दिखा रही है बल्कि गाँवों के लोगों को भी अपनी परंपरा और आतिथ्य से गर्वित कर रही है